अंक 34 | वर्ष 9 | जनवरी 2016 |
नीलकाँटा
= एकु घिमिरे
काँटा होकर भी निरीह है नीलकाँटा ।
दूसरो की इच्छाओं पर निर्भर आकृति
काट दिया जाता है कभी इधर कभी उधर।
कभी दूसरों के साथ जोड़कर बनाया जाता है स्वागतद्वार
कभी काटकर पीठ अधमरा कर दिया जाता है
काँटा होकर भी निरींह है नीलकाँटा।
बाड़ा बनकर खड़ी कर रहा है दूसरों के काँटे
आशावादी होकर हरा है सदा,
सदाबहार होकर ही सजावट में प्रयुक्त है।
सदियों से नीले फूल फूटने से पहले कटता रहा है
ठीक हम नेपालियों जैसे
काँटा होकर भी निरीह है नीलकाँटा।
-0-
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
टिप्पणियाँ |