अँक 38वर्ष 14जुन 2021

शंकालु शौहर

- लक्ष्मण अधिकारी

"मैं लंबी बातें नहीं जानता। तुरंत तलाक दे मुझे।"

पति के शब्द गर्म तीर जैसे कान कान में टकराए। हाथ पाँव फूल गए, वह सिसकियाँ लेकर बैठ गई।

"मैं क्यों तलाक दूँ ? उसके बदले तुम्हारे सामने जलकर मर जाऊँगी।" वह फूट पड़ी।

बच्चे का अन्नप्राशन समारोह के दिन से ही पति का क्रोध चोटी पर पहुँच गया है। जब से पड़ोसन चाची ने "लो देखो राई का बेटा ब्राह्मण जैसा दिखता है, आश्चर्य है न ? विकास हो गया है।" कहा है, तब से उसका शक सच्चाई में बदलता दिख रहा है। इस विषय में दिल में भरा हुआ भड़ास अब तक उसने निकाला नहीं था।

जब बच्चा तीन महीने का हो गया था तब उसने कहा था, "इसमें तो तुम्हारे और मेरे चेहरे की झलक कतई नहीं है।"

उसकी पत्नी ने कहा था, "जल्दबाजी क्यों करते हो? बाद में यह तुम जैसा ही हो जाएगा।" पत्नी की बात सुनकर वह तुनक गया था। उस दिनसे जब बच्चा सामने होता वह बच्चे का नाक, आँख और पूरा चेहरा गौर से देखता था। लेकिन उस बच्चे में मङ्गोल वर्ण की एक झलक भी नहीं थी, और आर्य वर्ण मुखरित हो रहा था। यह सब देखकर उसे लगा – कहीं टेस्टट्युब बेबी के चक्कर में कहीं छल तो नहीं कर गई !"

बहुत मिन्नतों बाद जन्मा बेटा, न निगलते बनता है न उगलते। फिर भी उसले अपनी बात व्यक्त कर झगड़ा मोल लेना नहीं चाहा। पर पड़ोसन चाची की टिप्पणी से शक और गहरा होता गया। विवाद इतना बढ़ गया की तलाक की नौबत आ गई।

"तू नें मुझे धोखा दिया है, कहीं मेरा संतान ऐसा दिखता है भला ?" पति ने अंतरात्मा की पीड़ा उगेल डाली। "अगर ऐसा ही करना था तो तू ने क्यों मेरे पैसे उड़ाये ?" कहकर वह उठ खड़ा हुआ।

अपने चरित्र पर कालिख पुती जाने पर, वह खुद को सम्हाल नहीं पाई। आक्रामक हो कह उठी, "यह सब तुम्हारे कारण ही हो रहा है, अगर तुम मर्द होते तो यह दिन नहीं देखना पड़ता।"

पत्नी की वचन वाण से वह मर्माहत हो गया। घायल शेर की भाँति आक्रमण करने लगा। कुछ देर की धक्कामुक्की के बाद, पत्नी ने डीएनए टैस्ट की चुनौती दी। यह सुनकर वह थोड़ा नर्म पड़ गया।

दूसरे ही दिन वे बेटेको लेकर लैब पहुँच गए। घर लौटने के बाद उसकी बेचैनी बढ़ गई और रातभर सो नहीं सका। मन में बार बार प्रश्न उठते, "अगर मेरा संतान नहीं है तो किसका होगा ?" वह संभावित पिता का चेहरा याद करने लगा।

पहला शक उसे पड़ोसी देवी प्रसाद की तरफ ले गया। सुरु से ही उसे उस ब्राह्मणका आना जाना अखरा था। लेकिन वह ब्राह्मण कुछ ज्यादा ही अपनत्व बढ़ाने में लगा था। कभी आज खीर पकाया है तो कभी रुद्री पाठ का प्रसाद कहते हुए आ धमकता। कहने को तो वह पत्नी को बहन कहता था लेकिन इसी आड़ मे पाप कर बैठा। देवी प्रसाद का पतला सा चेहरा याद करते ही वह आग बबूला हो गया और लगा एक ही मुक्के से उसे ढेर कर देगा। फिर उसे कुछ याद हो आया, "वह तो कौवे के माफिक काला है, और बच्चा दूध जैसा गोरा।"

सबेरे सबेरे दूध पहुँचाने के लिए आनेवाला वह लड़का तो बहुत गोरा है। शायद यही हो गड़बड़ करने वाला। खुद मैं तो घर में रहता नहीं, ज्यादातर बाहर ही रहना पढ़ता है। और वह आते ही मजाक किया करता है, कहीं इसी ने तो काम नहीं बिगाड़ा ? उसका क्रोध बढ़ता ही गया और उसे लगा, बाट जोहकर सबेरे ही खुकुरी से काम तमाम कर देगा उसका।

मन में आँधी चल रही है, सो नहीं सका है। करवटें बदलता रहा है। फिर उसे याद आया वह डॉक्टर जो पत्नीका इलाज कर रहा था। वह भी गोरा है, गठीला है। वह भी ब्राह्मण ही है। शायद उपचार के बहाने शायद वही कुछ कर बैठा हो।

उसने पत्नी का चेहरा याद किया, जो खिले हुए गुलाब की तरह उजाला है। जरूर उस डॉक्टर ने मुझे बेवकूफ बनाया। मुझे बाहर रखता था। भीतर वह मनमानी कर ही सकता था। जो चाहे करे। थू.... साला, पैसा भी डकार गया और मौज भी कर गया। उसे लगा उसीका स्टेथोस्कोप छिनकर गला दबा दे। वह पसीने से भीग गया था। उठा और दो गिलास पानी पी डाला।

वह सोना चाह रहा था, लेकिन उसे एक और ब्राह्मण की याद आ गई जो उसके ससुराल के गाँवका था। मेरे सामने खूब अपनापन दिखाकर "मेरे मीत मामा का बेटा" कहती थी। मायके में रहते हुए शायद इन दोनों की मुलाकात हो गई। खुद तो देख नहीं पाया, तीन दिन में बहुत सी बातें हो सकती है। वह क्रोध से तड़पकर खिड़की की तरफ गया, लेकिन उसे लगा तारे भी उसे ही चिढ़ाने लगे हैं, वह पर्दा गिराकर लौट पड़ा।

वह रातभर छटपटाता रहा। शक की सुई कई लड़कों की तर्फ मुड़ गई, लेकिन वह यकीन नहीं कर पाया। कहाँ जाऊँ, क्या करूँ की भावना उसको रातभर खदेड़ती रही। जो भी हो, किसी दूसरे का गर्भ धारण कर मुझे धोखा दे गई उसका निष्कर्ष यही था।

पड़ोसन दादी के प्रति भी वह क्रोधित हो उठा। "तू इतनी सुन्दर है, और बच्चा नहीं हो रहा है। बूढ़ापे में दुःखो का पहाड़ टूट पढ़ेगा और क्या!" कहती थी। कहीं बूढ़िया ने कोई साँढ़ तो नहीं भिड़ा दिया – उसका शक गहराता रहा। उसे लगा अभी बूढ़िया का गला घोँट दूँ।

जब शादी के सात साल बाद भी उन्हे कोई बच्चा नहीं हुआ तो उन्होने सभी पूजा-पाठ, दान-धर्म, ओझा आदिको बुलवाकर अनुष्ठान भी करवाए पर सफलता नहीं मिल पाई। गर्भ न ठहरने में पत्नीका दोष देखकर, उन्होंने खूब दवा-दारु करवाया, पर खाली हाथ लौटना पढ़ा।  जब डॉक्टर ने जाँच की खातिर उसे ले आने के लिए कहा तो, वह "तुम्हें मालूम नहीं है, मैं ठीक हूँ" कहते हुए बाँह फुलाकर बैठ गया और डॉक्टर के पास नहीं गया।

ऐसे में शादी के दश साल बित गए। संतान प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा उन्हें भीतर ही भीतर जला रही थी। अगर कोई अपना बच्चा लेकर घर में आता तो उन्हें लगता सालों साल छाती में चिपकाकर बैठे रहें। पर तुरंत मन भारी हो जाता और वे छु नहीं पाते थे। कमरे में जाकर आमने सामने बैठ जाते, एक दूसरे को देखते, कुछ देर के लिए एक दूसरे पर घृणा का भाव दिखाई देता, लेकिन फिर प्रेम की भावना तरङ्गित हो जाती। बाहों में भरकर एक दूसरेसे प्यार जताते तो कभी रो पड़ते। और फिर, "ईश्वर की इच्छा" कहते हुए, मन को शांत करते।

सन्तान प्राप्ति की सभी उपाय अपनाने पर भी हाथ खाली रहा तो वे टेस्टट्युब तकनीक अपनाने की मंसा से अस्पताल चले गए। अस्पताल में पता चला पत्नी का स्वास्थ्य ठीक है पर पति के वीर्य में शुक्राणुओं की सङ्ख्या घट जाने से गर्भाधान नहीं हो रहा था। जब डॉक्टर ने उन्हें फायदे जताए तो वे तैयारी में लग गए।

कृत्रिम विधि से पत्नी के अंड में पतिका शुक्रकीट निषेचित कर अड्तालिस घंटे बाद पत्नीके गर्भाशय में रखा गया। पहली बार में यह तकनीक काम कर गई और पति पत्नी हर्ष विभोर हुए। वह बीवी की देखभाल में लग गया। उसने पत्नीको भारी सामान ढोने, कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, आदि काम नहीं करने दिया। यहाँ  तक कि सिढ़ी चढ़ने पर भी पाबन्दी लगा दी। पत्नी के मन पसंद गहने और खाने की माग पूरी तरह से पूरा किया। तकरीबन उसने पलभर के लिए भी पत्नीको नहीँ छोड़ा।

पति की सेवा और प्यार से लबालब होकर बीवी कामना करने लगी, हे भगवान् ! मुझे सात जन्मों तक यही पति देना। नियत समय पर बच्चे ने अपने कदम धरती पर रखे। नामाकरण के दूसरे दिन अपने इष्ट-मित्रों को बड़ी सी पार्टी दे डाली। अब वही बच्चे के लिए अपना-पराया का टैस्ट करना पड़ रहा है, जिससे उसका दिल छलनी हो गया है।

कुछ दिनों बाद, पति-पत्नी दोनों डीएनए रिपोर्ट लेने के लिए प्रयोगशाला गए। डॉक्टर ने उन्हें बहुद देर तक इंतजार करवाया। अन्य सभी आगंतुक जाने के बाद डॉक्टर ने डीएनए मैच न होने का रिपोर्ट उन्हें दिया। दोनों को लगा वे गहरी खाई में गिर गए हैं। एक-दूसरे को देखा लेकिन बोली नहीं फूटी। अपने गोद के बच्चे को फर्श पर पटककर पति बाहर चला गया।

वह सीधे शराब की भट्टी की तरफ भागा। बीच में ही उसने रास्ता मोड़ लिया और वकील के यहाँ जाकर तलाक के कागजात तैयार करने के लिए कहा।

पत्नी दुःख से सुबकने लगी, "मैंने कोई गलत काम नहीं किया है।" लैब के डॉक्टर असमंजस में पड़ गए। उन्होंने टैस्टट्यूब निषेचन करवाने वाले डॉक्टर से एक बार मिलने को कहा।

उस रात पति घर नहीं आया। दूसरे दिन वकील के साथ वह आ धमका। पत्नी सबेरे ही निषेचन करवानेवाले डॉक्टर से अपना दुःखड़ा रो रही थी। उसकी बातें सुनकर डॉक्टर भी हैरान रह गए।

वे खुद जाकर फाइलें देखने लगे। सभी सहयोगियों को उपस्थित होने का आदेश दिया। इसी बीच पत्नीको ढूँढ़ते हुए पति भी वकील के साथ आ धमका। वकील ने कहा, "अब जो होना हो गया भाभी, तलाकनामें पर दस्तखत कर दो, दोनों के लिए आसान हो जाएगा। कब तक झगड़कर बैठी रहोगी।

यह सुनकर उसके होश उड़ गए। तलाक से ज्यादा अपने चरित्र पर उठी अंगुली उसे ज्यादा परेशान कर रही थी।

अस्पताल के लैब में अफरातफरी मचने लगी। पति और पत्नी दोनों को डॉक्टर ने अपने कमरे में बुलाया। डॉक्टर ने अति विनम्र भाव से उनसे हाथ जोड़कर माफी मांगी और क्षतिपूर्ति देनेका प्रस्ताव भी रखा। पति-पत्नी एक दूसरे को ताकने लगे पर माजरा उन्हें समझ में नहीं आया।

डॉक्टर कहने लगे, "देखिए जिस ट्यूब में आपके शुक्रकीट और डिम्ब रखे थे उनपर गलत नंबर लिखे गए। एक ही नंबर लिखे जाने से आपके डिंब पर दूसरे पुरुष का शुक्रकीट चला गया। इसमें पूरी की पूरी गलती हमारी है। हमारे कारण आपको जो परेशानी हुई उसके लिए हम माफी चाहते हैं।"

यह सुनकर पति क्रोधित हो डॉक्टरको डपटने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन पत्नी ने उसे रोका और राहत की सांस ली। अचानक पति "मुझे माफ कर दो प्रिये" कहते हुए उसे गले मिलनेके लिए आगे आया। लेकिन पत्नी ने उसे छोड़ वकील के हात में रहा तलाकनामा लेकर उसपर दस्तखत ठोंक दिए।

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मूल नेपाली से रूपान्तरः कुमुद अधिकारी

श्री अधिकारी की यह कहानी कहानी -संग्रह "मर्फिन" से ली गई है।

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लक्ष्मण अधिकारी
अनुवाद गरि प्रकाशित गरिदिनु भएकोमा धन्यवाद ।यो कथा कथा सङ्ग्रह "मर्फिन" बाट लिइएको भनेर उल्लेख गरिदिन अनुरोध गर्दछु ।लेखक: लक्ष्मण अधिकारी ।


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